— बिहार कृषि विश्वविद्यालय का बड़ा प्रयास, भौगोलिक सूचक में संरक्षित होगा शाहाबाद सोनाचूर
न्यूज़11 बिहार: बिहार के किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने और पारंपरिक कृषि उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय के वनस्पतिक अनुसंधान केंद्र, धनगाई, विक्रमगंज के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह और उनकी टीम ने विगत तीन वर्षों की अथक मेहनत के बाद “सोनाचुर धान” को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है।
डॉ. सिंह और उनकी टीम ने भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्वीकृत परियोजना के तहत कार्य करते हुए, बिहार के विभिन्न जिलों के किसानों से सोनाचुर धान की 44 विभिन्न किस्मों के सैंपल एकत्र किए। इन किस्मों का विस्तृत विश्लेषण कर उनकी गुणवत्ता, सुगंध, स्वाद और पोषक तत्वों की जांच की गई।
इसके तहत डीयूएस परीक्षण के माध्यम से यह पुष्टि की गई कि सोनाचुर धान एक विशिष्ट एवं पारंपरिक धान की किस्म है, जो शाहाबाद क्षेत्र (रोहतास, बक्सर, कैमूर, भोजपुर, अरवल, औरंगाबाद और पटना जिलों) में पाई जाती है। सोनाचुर की तुलना अन्य प्रसिद्ध सुगंधित और देशी धान की किस्मों जैसे कतरनी, कनकजीरा, बादशाहभोग एवं मिर्चा से की गई, जिसमें सोनाचुर की सुगंध, स्वाद और प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई गई।
यह इसे एक विशिष्ट और उच्च गुणवत्ता वाला धान बनाता है। इस विश्लेषण और अनुसंधान के आधार पर 245 पृष्ठों का दस्तावेज तैयार कर डॉ. सिंह ने निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक पंजीकरण एवं ट्रेडमार्क कार्यालय को भेजा है। इसका उद्देश्य है कि सोनाचुर धान को जीआई टैग प्राप्त हो, जिससे यह न केवल शाहाबाद क्षेत्र की पहचान बने बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसे स्थान मिल सके।
क्या है भौगोलिक संकेतक
भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग एक ऐसा नाम या चिन्ह होता है, जो किसी उत्पाद के विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से संबंध को दर्शाता है। इसका प्रयोग उन उत्पादों पर किया जाता है जिनकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं उनके मूल स्थान से जुड़ी होती हैं। इसे बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत संरक्षित किया गया है और यह टी आरआईपीएस समझौते के अनुच्छेद 22 से 24 के अंतर्गत आता है।
इसके प्रभाव और लाभ
जीआई टैग मिलने से सोनाचुर धान को न केवल बाज़ार में एक विशिष्ट पहचान मिलेगी, बल्कि इसके माध्यम से किसानों की आमदनी में भी वृद्धि होगी। साथ ही, यह पहल बिहार सरकार के कृषि विभाग द्वारा राज्य के पारंपरिक कृषि उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयास को भी मजबूती देगी। यह पहल स्थानीय कृषि को वैश्विक मंच पर लाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। सोनाचुर धान के जीआई टैग के बाद उम्मीद है कि राज्य के अन्य पारंपरिक उत्पाद भी इसी राह पर आगे बढ़ेंगे।
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