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अहियापुर की सुबह: सन्नाटे में डूबी एक दहला देने वाली कहानी

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-गोलियों की तड़तड़ाहट में बिखर गया एक हंसता-खेलता परिवार,तीन की मौत, दो जख्मी,बालू विवाद की आड़ में चली रंजिश की गोलियां

न्यूज़ 11 बिहार | बक्सर

शनिवार तड़के करीब 5:30 बजे का वक्त था। अहियापुर गांव की नहर पर बने पुल पर कुछ ग्रामीण सुबह की ताजगी में सुकून ढूंढ रहे थे। चारों ओर शांति पसरी हुई थी, मानो प्रकृति खुद मौन साधे हुए हो। लेकिन यह सन्नाटा ज्यादा देर कायम न रह सका। अचानक दो गाड़ियां पुल के दोनों छोर पर आकर रुकीं। उनमें से उतरे हथियारबंद लोगों ने बिना किसी चेतावनी के ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

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गोलियों की आवाजें “ठांय-ठांय” सुबह की निस्तब्धता को चीरती चली गईं। महज कुछ दूरी पर बसे गांव में जैसे भूचाल आ गया। नींद में डूबे लोग बदहवास दौड़ पड़े “पकड़ो! रोक लो!” की आवाजें गूंजने लगीं। कुछ ग्रामीण लाठियों और डंडों के सहारे हमलावरों का मुकाबला करने की कोशिश करने लगे, लेकिन गोलियों के सामने उनका साहस बौना पड़ गया। कुछ ही क्षणों में मंजर बदल चुका था। पांच लोग खून से लथपथ पुल पर गिर चुके थे। जिनकी सांसें बाकी थीं, वो तड़प रहे थे। वहां मौजूद हर आंख के सामने भय और बेबसी की तस्वीर उभर आई थी। घटना की खबर आग की तरह फैली। पीड़ितों के घरों तक जब यह खबर पहुंची, तो माताओं और पत्नियों की चीखें आसमान को चीरने लगीं। जिन घरों में कभी हंसी-ठिठोली होती थी, वहां अब मातम पसरा था। औरतें अपने बेटों और पतियों के शवों से लिपटकर बिलख रही थीं। गांव की वो गलियां, जो कल तक चहल-पहल से गुलजार थीं, आज सिसकियों और मातम में डूबी हुई थीं। यह खूनी खेल महज बालू और गिट्टी की दुकानदारियों की आड़ में शुरू हुआ एक विवाद नहीं था,इसकी जड़ें पंचायत चुनाव की पुरानी दुश्मनी में थीं। सत्ता की भूख ने रिश्तों को निगल लिया था।इस हमले में तीन जानें चली गईं, जबकि दो लोग जिंदगी और मौत के बीच झूलते अस्पताल में भर्ती हैं। जो लोग कभी गांव की भलाई की बातें करते थे, उन्होंने ही गांव के भाईचारे को खून से रंग दिया।

-बच्चो के सामने पिता की लाश,चुप कराने वाला का नहीं रुक रहा था आख का अंशु

गांव में हर तरफ खामोशी है, लेकिन उस खामोशी में एक चीख दब गई है ,क्या राजनीति अब इतनी बेरहम हो चुकी है छोटे-छोटे बच्चे रोते हुए अपने पिता के शव को देख रहे थे, और उन्हें चुप कराने वाला खुद आंसू नहीं रोक पा रहा था। यह महज एक आपराधिक वारदात नहीं थी , यह गांव की आत्मा पर हमला था। यह उस विश्वास का कत्ल था, जो गांववालों ने अपने नेताओं पर किया था। अहियापुर अब सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि जब सत्ता की भूख इंसानियत को रौंदने लगे, तो गांवों का भविष्य धुंधलाने लगता है। हर दिल में अब एक ही सवाल है,क्या हम इसी रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं  या फिर वक्त है कुछ बदलने का……

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