जहाँ गंगा की धारा बहती है, वहीं आंसुओं की लहर भी अब गहराती जा रही है
न्यूज़ 11 बिहार | बक्सर
बक्सर यह नाम सुनते ही एक अतीत जाग उठता है। रामायण की कथाओं से लेकर 1857 की लड़ाई तक, इस शहर की ज़मीन इतिहास की गवाह रही है। ऋषि विश्वामित्र की तपोभूमि, भगवान राम की शिक्षा स्थली, और बक्सर की निर्णायक लड़ाई ये सब इसकी पहचान हैं। लेकिन इस पहचान की आड़ में आज जो बक्सर खड़ा है, वह घावों से भरा हुआ है। यह शहर अब सिर्फ धार्मिक या ऐतिहासिक केंद्र नहीं, बल्कि एक ऐसे भूगोल में तब्दील हो चुका है जहाँ आम नागरिक अपराध, प्रशासनिक निष्क्रियता और राजनीतिक उपेक्षा के बीच झूलता नजर आता है।
अहियापुर हत्याकांड हो या अमीरपुर गोलीकांड, अब यह शहर लाशों की खबरों से ज्यादा जाना जाने लगा है। एक तरफ गंगा आरती की रोशनी है, दूसरी तरफ बेखौफ अपराधियों की बंदूकों की चमक। यह विरोधाभास ही बक्सर की सबसे बड़ी त्रासदी बन चुका है।
बक्सर की गलियों में डर पसरा है
कभी जो गलियाँ उत्सवों और मेलों से भरी रहती थीं, अब वहीं पर शाम होते ही सन्नाटा पसरने लगता है। लोगों की आँखों में अब उत्साह नहीं, चिंता दिखती है। दुकानों के शटर जल्दी गिरते हैं, युवाओं के चेहरों पर स्थायित्व की बजाय असमंजस है।
राजनीति और प्रशासन: सन्नाटे में लिपटी जवाबदेही
हत्याओं के बाद नेतागण आते हैं, बयान देते हैं, संवेदना प्रकट करते हैं, फिर लौट जाते हैं। प्रशासन कुछ देर के लिए सक्रिय दिखता है, फिर फाइलों की गर्द में सबकुछ धुंधला हो जाता है। सीओ की चिट्ठी हो या एसडीएम की चुप्पी, यह स्पष्ट है कि सत्ता का तंत्र अब जनता की बजाय अपनी रक्षा में ज्यादा लगा हुआ है। जिन पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी है, वे अब खुद को बचाने में जुटे हैं।
बक्सर का युवा: इतिहास की किताबों से निकलकर जमीनी जद्दोजहद में फंसा
बक्सर का युवा आज भी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करता है, लेकिन उसके मन में यह भी सवाल है कि वह किस शहर के लिए लड़ेगा। क्या यह वही बक्सर है जहाँ ज्ञान और शौर्य का संगम होता था, या फिर अब यह बस अखबार की ‘क्राइम बुलेटिन’ का हिस्सा भर बन गया है।
फिर भी उम्मीद बची है…
बक्सर की आत्मा अभी पूरी तरह मरी नहीं है। मंदिरों की आरती, स्कूलों की घंटी, और माँओं की प्रार्थनाएं इस शहर को जीवित रखे हुए हैं। कुछ लोग अब भी बदलाव की बात करते हैं, कुछ अब भी निडर होकर सवाल पूछते हैं। यह जीने की चाह ही है जो बक्सर को बाकी शहरों से अलग बनाती है। बक्सर को सिर्फ इतिहास की शोभा न बनाओ, इसे वर्तमान की सच्चाई और भविष्य की जिम्मेदारी के रूप में जियो। क्योंकि यह शहर सिर्फ दीवारों पर लिखी कहानियों से नहीं, यहाँ के लोगों के जज़्बे से ज़िंदा है।
-प्रत्येक रविवार को पढ़े शहरनामा : @amitkrojha
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